8TH SEMESTER ! भाग- 138( Eye for An Eye-7)
आख़िरकार मैने वही दीवार पर एक हाथ टिका कर खड़े रहने का फ़ैसला किया और च्विन्गम मुँह मे ना होते हुए भी रोल मे ऐसे मुँह चलाने जैसे 5-6 चिनगम मेरे मुँह मे एक साथ हो...
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"सुन बे..."जब वो तीनो मेरे सामने आए तो मैने दूसरी तरफ खड़े अपने क्लास के एक लड़के से तेज़ आवाज़ मे कहा"उस लड़के को होश आ गया क्या ,जिसे मैने कल रात सर पर रोड से मारा था या अभी भी कोमा मे है...."
पता नही मुझे अचानक क्या हुआ,जो मैं ये सब गौतम के मुँह पर बोल गया, क्यूंकी अंदर से तो मेरी भी बुरी तरह से फटी हुई थी, कि कही फिर से लफड़ा ना हो जाए... कही फिर से गौतम के गुंडे मेरी खातिरदारी करने ना आ जाये. पर अरमान तो फिर अरमान ही है...
मेरी बात सुनकर गौतम एक पल के लिए जहाँ था वही रुक गया, मुझे देखा... मुझे आभास हुआ की अब फिर हम दोनों के बीच बहस बाजी होगी... एक दूसरे को नीचाँ दिखाएंगे, एक दूसरे के शरीर के चोटों का मज़ाक उड़ाएंगे... जिसके बाद मै फिर गौतम को यही पहुडा कर कचरूँगा. लेकिन मेरे सारे अरमानो पर पानी फेरते हुए अगले ही पल वो वहाँ से आगे बढ़ने लगा.... मैने जिस लड़के को बलि का बकरा बनाकर आवाज़ दिया था वो अपना मुँह फाडे मुझे देख रहा था कि ये मैने उससे क्या कह दिया.... जब गौतम ,ईशा और दिव्या के साथ आगे बढ़ गया तो एक बार फिर मैने जले पर नमक छिड़का और बलि का बकरा एक बार फिर से उसी लड़के को बनाया
"ओये उसकी उस आइटम का क्या हुआ, जिसका बाप बेदम रहीस है और जो कार से एक और आइटम के साथ आती है...."
"क्या बोल रहा है भाई,मरवाएगा क्या..."उस बलि के बकरे ने रोनी सी सूरत बनाई लेकिन मैं कहाँ मानने वाला था,अबकी बार मैने गौतम के ज़ख़्म पर नमक के साथ मिर्ची भी डाला
"यदि वो लड़का,जिसके सर पर मैने रोड मारी थी,वो तुझे दिखे तो उससे बोलना कि मेरे सामने औकात मे रहे, वरना एक बार फिर से ठोकुन्गा... "
गौतम इस बार भी चुप रहा लेकिन उसे सहारा देने वाली ईशा तुरंत पीछे पलट कर अपने गुस्से मे बड़बड़ाने लगी... शायद मुझे मन ही मैन गालिया दे रही थी, jiसे मैं आँखो मे काला चश्मा लगाए, दीवार पर हाथ टिकाये.. एकदम रोल मे उसको देखकर मुस्कुराता रहा, जिससे वो और भी जल-भुन गयी...जिस लड़के को मैने तीन बार बलि का बकरा बनाया था वो इस समय वहाँ से भाग चुका था.
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मुझे आज थोड़ा गौतम के बर्ताव पर ताज्जुब हुआ क्यूंकी वो आज मेरे मुँह से इतनी सारी बाते सुनकर भी चुप चाप रहा था.... लेकिन कब तक ? क्यूंकी इतना तो मैं जानता था कि वो मेरे सामने कभी अपना सर नहीं झुकायेगा और मेरे झुकने का तो सवाल ही पैदा नही होता.... इसलिए मैने उसी वक़्त आँखो मे काला चश्मा लगाए ये अंदाज़ा लगा लिया था कि हम दोनो यदि कभी भूले से भी अगली बार एक-दूसरे के आमने सामने आए तो अंजाम बहुत ही बुरा होगा ,क्यूंकी अबकी बार गौतम का गुंडा बाप सीधे मेरी जान लेगा लेकिन मैं इतना बकचोद नही जो पिछली बार की तरह गौतम के बाप के चंगुल मे फँस जाउन्गा, infact यदि ऐसा कुछ हुआ तो मै फिर सीधे गौतम के बाप और उसके नागपुर वाले गुंडे अंकल को रास्ते से हटाऊँगा... थोड़ी सी अकल, थोड़ी सी डेरिंग और थोड़ा सा झूठ.... इन तीन के साथ मै सब कुछ कर सकता हूँ... कुल-मिलाकर जो भी होने वाला था बहुत बुरा होने वाला था.
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"अरमान तुमममम ... Wow... ओह्ह.. I mean... How... How are you"अपने सीने से अटेंडेंस रजिस्टर चिपका कर विभा मैम मुझे क्लास के बाहर देख बोली
"Fine, वैसे छातिया खुली रखा करो.. रजिस्टर से ना छीपाओ इन्हे.. इतनी मस्त तो है.. "विभा को देखकर उसके थोड़ा करीब जाते हुए मैने अश्लील comment किया
"इतनी मार खाने के बाद भी नहीं सुधरे.. इडियट... और ज़रा ढंग से पेश आओ ,ये कॉलेज है इसलिए गॉगल्स उतारो और चिनगम थूक कर क्लास के अंदर आओ..."
"बिस्तर पर लेटो मेरे साथ तो जो कहोगी वो करूँगा... गॉगल भी उतारूँगा और कपडे भी. और सुधरने का वक़्त मेरा नहीं है, बल्कि कुछ लोगो को सुधारने का वक़्त आ गया है..."
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इतने दिनों बाद कॉलेज आने के कारण मै क्लास मे आज थोड़ा शांत था...मेरी शांत रहने की एक और वजह शायद ये भी थी कि आज मेरे खास दोस्तो मे से कोई भी कॉलेज मे नही था. इसलिए यदि मैं क्लास मे हुड़दंगी करता भी तो किसके साथ करता... मैने अपने आस-पास बैठे लड़को से कई बार बात करने की कोशिश भी की लेकिन मैं जिससे भी बात करता वो मेरी बात को सुनकर अनसुना कर देता और बोलता कि उसे क्लास से बाहर निकाल दिया जाएगा......
"साले कितने बोरिंग हो बे तुम लोग..."जब रिसेस हुआ तो अंगड़ाई मारते हुए मैं बोला"इससे अच्छा तो मैं लास्ट बेंच पर अकेले ही बैठू... संस्कार नहीं तुम लोगो मे ."
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रिसेस के बाद फिर क्लास चालू हुई और अब मैं लास्ट बेंच पर अकेला बैठा हुआ था...मैने बहुत प्रयास किया कि मुझे नींद ना आए लेकिन टीचर्स के लेक्चर्स मुझे किसी लोरी की तरह लग रहे थे और रिसेस के बाद दूसरे पीरियड मे ही मेरी आँखे भारी होने लगी... .मैने सामने डेस्क पर अपना बैग रखा और फिर बैग के ऊपर अपना सर रखकर अपनी आँखे मूँद ली
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"उठो,क्लास मे ताला लगाना है..."किसी ने मुझे ज़ोर से हिलाते हुए कहा...
"What the hell.... क्लास के बाकी लोग कहाँ गये..."आँखे मलते हुए मैने पीऊन से पुछा...
इस समय पूरी क्लास मे मेरे और उस चपरासी के सिवा कोई और नही था,इसलिए मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ
"छुट्टी हो गयी है,सब अपने घर को निकल गये अब तुम भी इधर से निकलो ,मुझे ताला लगाना है..."
"ये कैसे हो गया... साला किसी ने उठाया तक नहीं... "तुरंत खड़े होकर मैने अपना बैग टांगा और बड़बड़ाते हुए क्लास से बाहर आया...
"साले, स्वार्थी.... मुझे जगाया तक नही और टीचर्स कैसे झन्डू थे जो उन्होने मुझे कुछ कहा तक नही... ज़रूर सालो की फट गयी होगी कि कही मुझे जगाने पर मैं उन्हे ही ना पेल दूं. "
टाइम देखने के लिए मैने अपने जेब से मोबाइल निकलना चाहा तो मोबाइल मेरे जेब से गायब था , तब मुझे याद आया कि मोबाइल तो क्लास मे मेरे डेस्क पर ही छूट गया है.... जहा मै पोर्न देख रहा था.
"सुनो भैया, क्लास दोबारा खोलना तो ,मेरा मोबाइल अंदर छूट गया है..."
उस पियून को आवाज़ देकर मैने कहा लेकिन वो पियून अपनी पीठ मेरी तरफ किए बाहर कॉरिडर मे झाड़ू लगा रहा था....उसके बाल अचानक से बहुत लंबे हो गये थे.. पता नहीं कैसे..?? ताला बंद करते समय तो नार्मल ही थे. मेरे द्वारा दोबारा ताला खोलने का सुनकर वो पियून झाड़ू लेकर मेरी ओर घूमा तो...... तो मेरा दिल जैसे एक पल के लिए रुक ही गया...क्यूंकी उस पियून की शक्ल विनोद कि शक्ल मे बदल चुकी थी.... विनोद वही, जिसके मरने का सपना मुझे हॉस्टल मे आया था और फिर आँख खुलते ही वो फंसी पर टंगा हुआ मिला था... Remember Him???
"इसकी तो.... मैं फिर से सपना देख रहा हूँ...??"मैने कहना चाहा लेकिन पता नही क्यूँ आवाज़ मेरे गले से बाहर ही नही निकली... मैने अपना पूरा दम लगा दिया, लेकिन एक शब्द मेरे मुँह से नहीं निकला.. एक शब्द क्या.. एक अक्षर तक नहीं...
मैने तुरंत वहाँ से भागने का सोचा लेकिन विनोद को वहाँ देखकर पैर ज़मीन मे ऐसे चिपक गये कि वहाँ से भागना तो दूर एक कदम आगे-पीछे भी नही हो रहे थे..... और इधर विनोद अपने लंबे बालो की लटो को पीछे करते हुए खूंखार मुस्कान के साथ मेरी तरफ बढ़ रहा था.
मैं जानता था कि विनोद का भूत सिर्फ़ मेरे दिमाग़ मे है और हक़ीक़त से इसका कोई वास्ता नही है... लेकिन एक सच ये भी था कि विनोद को सपने मे देखकर मेरी सिट्टी-पिटी गुम हो जाती थी...साला कभी कुछ समझ ही नही आता था कि मैं क्या करूँ ? कैसे मेरे दिमाग़ मे बैठे विनोद से पीछा छुड़ाऊ... ये सपना भले ही मेरा था लेकिन राज़ विनोद कर रहा था..... अरुण सही बोला था हॉस्पिटल मे की... मेरे सर कि चोट से मेरे दिमाग़ पर कुछ असर होगा... उस समय तो ऐसा कुछ नहीं था.. पर अब लगता है असर होने लगा है और यदि.. ये असर समय के साथ बढ़ता गया तो....??? फिर मेरा क्या होगा...??
आज कल हमारे देश मे बहुत सारे धर्म गुरु है...कुछ फ़र्ज़ी है तो कुछ धर्म की आड़ मे अपना काला धंधा चलाते है.... इसलिए इनके पास जाकर अपनी प्राब्लम बताना मतलब एक दूसरी प्राब्लम मे फँसना है... मैं जब अकेले रहता हूँ तो अपने दिमाग़ मे बैठे विनोद को दूर करने के लिए बहुत सोचता हूँ और नये प्लान बनाता हूँ, ताकि सपने मे अपने दिमाग़ मे बैठे विनोद को हरा सकूँ ...लेकिन पता नही क्यूँ विनोद को देखते ही जैसे मुझे कुछ याद ही नही आता. उस वक़्त मुझे ऐसा लगता है जैसे इस पूरी दुनिया मे मेरे सिवा सिर्फ़ और सिर्फ़ वो ही है...मेरे सपने के आस-पास का दृश्य आज भी ठीक वैसा ही था जैसे कि हरदम होता था, यानी कि आस-पास हम दोनो के आलवा कोई तीसरा नही था ,जिसे मैं मदद के लिए पुकार सकूँ....
मैने कई बार सोचा कि किसी बाबा,पंडित के पास जाकर अपनी प्राब्लम उन्हे बताऊ कि मुझे मेरा मरा हुआ दोस्त सपने मे मुझे बहुत परेशान करता है लेकिन फिर मैने अपना विचार बदल दिया और इन फ़र्ज़ी बाबाओं से मदद लेने की बजाय गूगल बाबा की शरण मे गया ....मैने गूगल की साइट पर जाकर सर्च किया कि एक बुरे सपने से कैसे बचा जा सकता है. मेरे सर्च करने के बाद अपनी आदत अनुसार गूगल महाराज ने हज़ारो तरीके मुझे बताए और मेरा 3-4 घंटे का समय खाया... लेकिन सिर्फ़ एक काम की बात मुझे उस 3-4 घंटे मे समझ आई और वो काम की बात ये थी कि "उस बुरे सपने से निकलने की जल्द से जल्द कोशिश करो..."
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गूगल महाराज ने मुझे ये भी बताया कि मैं जो सपने मे करूँगा उसका थोड़ा- बहुत एफेक्ट मेरे वास्तविक जीवन पर भी पड़ेगा.....
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"अरमान.. मुझे फांसी पर लटके देख तुझे बहुत मजा आया था ना... जब मेरी जीभ बाहर निकाल आई थी और नीली पैड गई थी... तू उस दिन मेस मे क्यों नहीं आया,जिस दिन मै मरा था..?? मै वहा तेरा इंतजार कर रहा था......"विनोद सीधे कूदकर मेरे उपर चढ़ गया और अपनी डरावनी हँसी से मेरे अंदर डर के साथ -साथ दर्द पैदा करने लगा.... क्यूंकि उसने मेरे हाथ को चबाना शुरू कर दिया था.
दर्द से चिल्लाते हुए मैने अपनी गर्दन इधर -उधर की... ताकि किसी तरह मैं इस बुरे सपने से बाहर आ सकूँ और तभिच मेरे 1400 ग्राम के दिमाग़ ने पहली बार विनोद के सामने अपनी बत्ती जलाई और मैने अपना सर पास की दीवार मे ज़ोर से दे मारा.....
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इधर मैने अपना सर दीवार पर मारा और उधर दूसरी तरफ मेरी नींद डेस्क मे मेरे सर टकराने से खुली...